इंटरनेशनल सोसायटी फॉर परशुराम कॉन्शसनेस
भारतीय सनातन संस्कृति अपने मूल रूप में इसी विचारधारा का व्यापक रूप लिए निरंतर अग्रगामी है. ऐसी संस्कृति जो अपने स्थापनकाल से ही त्याग की संस्कृति रही है; जहां समाज हेतु सर्वस्व न्योछावर करना और करते ही जाना जीवन का एकमात्र उद्देश्य परिलक्षित होता है. वैदिक काल से हमारे वेद, शास्त्र पुराण, उपनिषद यह प्रेरणा देते रहे है कि सम्पूर्ण विश्व एक परिवार है. विश्व के किसी भी एक हिस्से का पिछड़ा या अविकसित रहना समस्त परिवार के पिछड़ेपन का द्योतक है। परिवार के सुख, सम्वृद्धि सफल एवं ज्ञान सम्पन्न होने में परिवार के हर सदस्य की भूमिका महत्वपूर्ण है.
इसी विश्व परिवार की भावना को हृदय में लेकर सन् 2009 में श्री सुशील ओझा के मुख्य संयोजन में विप्रा फाउंडेशन की नींव रखी गई. जो अपनी स्थापना से आज तक "सर्वे भवन्तु सुखिन: की भावना से विश्व कल्याण की दिशा में तत्पर है. फाउंडेशन द्वारा भगवान परशुराम के जीवन-चरित्र एवं दर्शन को जन-मानस तक पहुंचाने एवं आज की पीढ़ी को भारतीय संस्कृति से जोड़ने के लिए निष्ठा से कार्य किया जा रहा है |